Tuesday, 2 September 2014

हाँ वो नहीं खुदापरस्त ( Han wo nahi khudaparast )

Ephemeral life :

"इलाज करनेवाले की मजबूरियाँ
छालों पर भी हिना बांधते हैं

जीवन की कैद से रिहाई मालूम
आंसू को बे सिर-पैर बांधते हैं"

(-simplified version of shers by मिर्ज़ा ग़ालिब)

The original shers are as given below:

"अहले-तदबीर की बामान्दगियाँ
आबलों पर भी हिना बांधते हैं 

कैदे-हस्ती से रिहाई मालूम
अश्क को बे सर-ओ-पा बांधते हैं" 

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)

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01.07.2014

Getting something means losing something greater :

"इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया 
 
दर्द की दवा पायी, दर्द बे-दवा पाया।"

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)
 
शब्दार्थ : (1) ज़ीस्त = जीवन


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01.07.2014

It’s not easy to express your adversity 

"ऐसा आसाँ नहीं लहू रोना 
 
दिल में ताकत जिगर में हाल कहाँ।" 

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)


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01.07.2014

Creativity knows no constraints :

"मिसाल ये मेरी कोशिश की है कि बंदी पक्षी

जोड़े पिंजरे में भी घास घोंसले के लिए
।"

(-simplified form of sher by मिर्ज़ा ग़ालिब)

Original sher is as follows:

"मिसाल ये मेरी कोशिश की है कि मुर्गे-असीर 
 
करे कफ़स में फ़राहम खस आशियाँ के लिए।"

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)

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01.07.2014 


You don't pursue your passion for it's outcome:

"हाँ वो नहीं खुदापरस्त, जाओ वो बेवफा सही 
 
जिसका हो दिन-ओ-दिल अज़ीज़, उसकी गली में जाये क्यूँ।"

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)

शब्दार्थ : (1) दिन-ओ-दिल अज़ीज़ = धर्म और ह्रदय से प्यार