Saturday, 7 November 2015

पोस्ट सं.11: कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे नीमकश को ( Post No.11: Koi mere dil se puche tere teere neem-kash ko )



If you are feeling the pinch of adversity you are fortunate:
(See the sher of Galib with meaning and my commentary)

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे नीमकश को
ये खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता”
(-मिर्जा गालिब)

LITERAL MEANING:
कोई मेरे दिल से पूछे तेरा तीर जिसमें धँसा है
ये चुभन कहाँ से होती गर वो पार निकल जाता”
(-simplified form of sher of Galib)

COMMENTARY
 Mirza Galib is saying that he is fortunate that he could experience the rare kind of pinch by getting half-success in the path of ambitions. This pinch has kept him activated for reaching even greater heights of literature. He is using the similes of “beloved” for ambition and “arrow half-entered in his heart” for half-success.

Tuesday, 2 September 2014

हाँ वो नहीं खुदापरस्त ( Han wo nahi khudaparast )

Ephemeral life :

"इलाज करनेवाले की मजबूरियाँ
छालों पर भी हिना बांधते हैं

जीवन की कैद से रिहाई मालूम
आंसू को बे सिर-पैर बांधते हैं"

(-simplified version of shers by मिर्ज़ा ग़ालिब)

The original shers are as given below:

"अहले-तदबीर की बामान्दगियाँ
आबलों पर भी हिना बांधते हैं 

कैदे-हस्ती से रिहाई मालूम
अश्क को बे सर-ओ-पा बांधते हैं" 

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)

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01.07.2014

Getting something means losing something greater :

"इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया 
 
दर्द की दवा पायी, दर्द बे-दवा पाया।"

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)
 
शब्दार्थ : (1) ज़ीस्त = जीवन


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01.07.2014

It’s not easy to express your adversity 

"ऐसा आसाँ नहीं लहू रोना 
 
दिल में ताकत जिगर में हाल कहाँ।" 

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)


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01.07.2014

Creativity knows no constraints :

"मिसाल ये मेरी कोशिश की है कि बंदी पक्षी

जोड़े पिंजरे में भी घास घोंसले के लिए
।"

(-simplified form of sher by मिर्ज़ा ग़ालिब)

Original sher is as follows:

"मिसाल ये मेरी कोशिश की है कि मुर्गे-असीर 
 
करे कफ़स में फ़राहम खस आशियाँ के लिए।"

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)

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01.07.2014 


You don't pursue your passion for it's outcome:

"हाँ वो नहीं खुदापरस्त, जाओ वो बेवफा सही 
 
जिसका हो दिन-ओ-दिल अज़ीज़, उसकी गली में जाये क्यूँ।"

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)

शब्दार्थ : (1) दिन-ओ-दिल अज़ीज़ = धर्म और ह्रदय से प्यार

Tuesday, 6 May 2014

ऐ काश जानता न तेरी रहगुजर को मैं ( Ai kash janta na teri rahgujar ko mai )


Dependency on our revered political leaders is ......... :
:
"काम उनसे आ पड़ा है जिसका जहान में
 
लेवे न कोई नाम सितमगर कहे बगैर।"

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)


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14.04.2014

A poor always dreams for resources but it is never likely to reach him in a perverse kind of system :

"हमारे ज़ेहन में इक फिक्र का है नाम विसाल 

कि गर न हो, तो कहाँ जाएँ, हो तो क्यूँकर हो।"

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)

शब्दार्थ: (1) फिक्र = सोच, (2) विसाल = मिलन



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14.04.2014 


 All of bad experiences of past look soothing if you finally 

succeed :
 

"पाँव के ज़ख्म पे जो तुझको रहम आया है 

 
तेरी राह के काँटों को हम प्यारी घास कहते हैं।"

 
(-मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर का सरल रूप)

 

Original sher is as foloows:

 

"पा-ए-अफगार पे जब से तुझे रहम आया है 

 
खारे-रह को तेरे हम मेह्र गिया कहते हैं।"



(-मिर्ज़ा ग़ालिब)

शब्दार्थ: (1) पा-ए-अफगार = ज़ख़्मी पाँव, (2) खारे-रह = राह का 


काँटा, (3) मेह्र गिया = प्रेम रुपी घास


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Keep yourself enthused even in the face of most severe

 handicap : 
 

"गो हाथ को जुम्बिश नहीं, आँखों में तो दम है 

 
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे।"

 

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)

 
शब्दार्थ : (1) गो = हालांकि, (2) जुम्बिश = हिलना, (3)


 सागर-ओ-मीना = शराब का जग और प्याला

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14.04.2014

Experimentalism persists till you find someone worthy to rely

upon :

"चलता हूँ थोड़ी दूर हर एक तेज रौ के साथ 


पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर को मैं।"

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)


शब्दार्थ: (1) तेज रौ = तेज चलनेवाला चेहरा, (2) राहबर = पथ-प्रदर्शक


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12.04.2014


All of bad experience of past look soothing if you finally succeed :

"पाँव के ज़ख्म पे जो तुझको रहम आया है 
 
तेरी राह के काँटों को हम प्यारी घास कहते हैं।"

(-मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर का सरल रूप)

Original sher is as foloows{

"पा-ए-अफगार पे जब से तुझे रहम आया है 
 
खारे-रह को तेरे हम मेह्र गिया कहते हैं।"

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)

शब्दार्थ: (1) पा-ए-अफगार = ज़ख़्मी पाँव, (2) खारे-रह = राह का काँटा, 
(3) मेह्र गिया = प्रेम रुपी घास


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14.03.2014

If you are facing discomfiture of sorts, people will identify you
only with that. All extraordinary things of yours even your 
good heart will be ignored by them :

"हस्ती का एतिबार भी गम ने मिटा दिया 
 
किससे कहूँ कि दाग, जिगर का निशान है।"

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)

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14.03.2014

Achieving one’s own goal is an enviable proposition, still the
 truly devoted ones love to talk about it.



"छोड़ा न रश्क़ ने कि तेरे घर का नाम लूँ

हर एक से पूछता हूँ कि जाऊं किधर को मैं।"



(-मिर्ज़ा ग़ालिब)

शब्दार्थ: (1) रश्क़ = ईर्ष्या
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In general, people wait for happiness like an anxious person 
who waits for his beloved at the door standing like a 
gatekeeper of his own house.

"वादा आने का वफ़ा कीजे , ये क्या अंदाज़ है 
 
तुमने क्यूँ सौंपी है मेरे घर की दरबानी मुझे। "

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)

The message of the ‘sher’ is that people should enjoy the 
pleasures of the resources they already have rather than 
spoiling their time for some uncertain happiness in future.

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The irony of life is your most coveted things are often found

with something even more nauseated ones :
 

"जाना पड़ा रकीब के दर पर हजार बार 

 
ऐ काश जानता न तेरी रहगुजर को मैं।"

(-मिर्ज़ा ग़ालिब)

 
शब्दार्थ: (1) रकीब = प्रेमिका का दूसरा प्रेमी, (2) दर = दरवाजा , (3) 


रहगुजर = रास्ता


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Saturday, 15 February 2014

फिर खुला है दरे-अदालते-नाज़ ( Fir khula hai dare-adalate-naaz )




Friday, 14 March, 2014 

 गरचे है किस-किस बुराई से, वले बा ईं हमा 
 
ज़िक्र मेरा मुझसे बेहतर है कि उस महफ़िल में है।"

 
('ग़ालिब')

 
शब्दार्थ : (1) गरचे = हालांकि, (2) वले बा ईं हमा = इन सबके 


बावजूद 
 
Ghalib is saying that his beloved always names him while 


cursing but he feels that his curses are more fortunate that 

him which finds places near her.

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General Election is like a doorstep of lover...
 

"फिर खुला है दरे-अदालते-नाज़ 

 
गर्म बाज़ारे-फौज़दारी है। 

 

फिर हुए हैं गवाहे-इश्क तलब 

 
अश्कबारी का हुक्म जरी है।" 



शब्दार्थ::(1) दरे-अदालते-नाज़ = प्रियवर की अदालत का द्वार, (2) 


फौज़दारी = मार-पीट, (3) तलब = बुलाये गए, (4) अश्कबारी = आंसू 

बहाना

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Today is the death anniversary of MIRZA GHALIB :

"ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले-यार होता 

 
अगर और जीते रहते, यही इन्तजार होता ।

 

तेरे वादे पे जीए हम तो ये जान झूठ जाना 

 
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतबार होता ।



कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे-नीमकश को 

 
ये खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता । "


(-ग़ालिब')

शब्दार्थ:(1) विसाले-यार = प्रेमी से मिलन, (2) तीरे-नीमकश = वह 


तीर जो घाव में से आधा खींचकर छोड़ दिया गया हो, (3) खलिश = दर्द

 की टीस

Meaning of third sher : Ghalib says I am fortunate that my 


beloved has left me while my love was still rising. And that is 

why I am able to experience the rare kind of supreme 

emotional pain which was not possible, had she been with 

me.