Ephemeral life :
"इलाज करनेवाले की मजबूरियाँ
छालों पर भी हिना बांधते हैं
छालों पर भी हिना बांधते हैं
जीवन की कैद से रिहाई मालूम
आंसू को बे सिर-पैर बांधते हैं"
आंसू को बे सिर-पैर बांधते हैं"
(-simplified version of shers by मिर्ज़ा ग़ालिब)
The original shers are as given below:
"अहले-तदबीर की बामान्दगियाँ
आबलों पर भी हिना बांधते हैं
कैदे-हस्ती से रिहाई मालूम
अश्क को बे सर-ओ-पा बांधते हैं"
(-मिर्ज़ा ग़ालिब)
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01.07.2014
Getting something means losing something greater :
"इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
"इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पायी, दर्द बे-दवा पाया।"
(-मिर्ज़ा ग़ालिब)
शब्दार्थ : (1) ज़ीस्त = जीवन
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01.07.2014
It’s not easy to express your adversity
"ऐसा आसाँ नहीं लहू रोना
"ऐसा आसाँ नहीं लहू रोना
दिल में ताकत जिगर में हाल कहाँ।"
(-मिर्ज़ा ग़ालिब)
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01.07.2014
Creativity knows no constraints :
"मिसाल ये मेरी कोशिश की है कि बंदी पक्षी
जोड़े पिंजरे में भी घास घोंसले के लिए।"
(-simplified form of sher by मिर्ज़ा ग़ालिब)
Original sher is as follows:
"मिसाल ये मेरी कोशिश की है कि मुर्गे-असीर
करे कफ़स में फ़राहम खस आशियाँ के लिए।"
(-मिर्ज़ा ग़ालिब)
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01.07.2014
You don't pursue your passion for it's outcome:
You don't pursue your passion for it's outcome:
"हाँ वो नहीं खुदापरस्त, जाओ वो बेवफा सही
जिसका हो दिन-ओ-दिल अज़ीज़, उसकी गली में जाये क्यूँ।"
(-मिर्ज़ा ग़ालिब)
शब्दार्थ : (1) दिन-ओ-दिल अज़ीज़ = धर्म और ह्रदय से प्यार
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