Saturday 15 February 2014

फिर खुला है दरे-अदालते-नाज़ ( Fir khula hai dare-adalate-naaz )




Friday, 14 March, 2014 

 गरचे है किस-किस बुराई से, वले बा ईं हमा 
 
ज़िक्र मेरा मुझसे बेहतर है कि उस महफ़िल में है।"

 
('ग़ालिब')

 
शब्दार्थ : (1) गरचे = हालांकि, (2) वले बा ईं हमा = इन सबके 


बावजूद 
 
Ghalib is saying that his beloved always names him while 


cursing but he feels that his curses are more fortunate that 

him which finds places near her.

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General Election is like a doorstep of lover...
 

"फिर खुला है दरे-अदालते-नाज़ 

 
गर्म बाज़ारे-फौज़दारी है। 

 

फिर हुए हैं गवाहे-इश्क तलब 

 
अश्कबारी का हुक्म जरी है।" 



शब्दार्थ::(1) दरे-अदालते-नाज़ = प्रियवर की अदालत का द्वार, (2) 


फौज़दारी = मार-पीट, (3) तलब = बुलाये गए, (4) अश्कबारी = आंसू 

बहाना

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Today is the death anniversary of MIRZA GHALIB :

"ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले-यार होता 

 
अगर और जीते रहते, यही इन्तजार होता ।

 

तेरे वादे पे जीए हम तो ये जान झूठ जाना 

 
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतबार होता ।



कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे-नीमकश को 

 
ये खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता । "


(-ग़ालिब')

शब्दार्थ:(1) विसाले-यार = प्रेमी से मिलन, (2) तीरे-नीमकश = वह 


तीर जो घाव में से आधा खींचकर छोड़ दिया गया हो, (3) खलिश = दर्द

 की टीस

Meaning of third sher : Ghalib says I am fortunate that my 


beloved has left me while my love was still rising. And that is 

why I am able to experience the rare kind of supreme 

emotional pain which was not possible, had she been with 

me.